ख़ंजर की तरह बू-ए-समन तेज़ बहुत है मौसम की हवा अब के जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है रास आए तो है छाँव बहुत बर्ग ओ शजर की हाथ आए तो हर शाख़ समर-रेज़ बहुत है लोगो मिरी गुल-कारी-ए-वहशत का सिला क्या दीवाने को इक हर्फ़-ए-दिल-आवेज़ बहुत है मुनइम की तरह पीर-ए-हरम पीते हैं वो जाम रिंदों को भी जिस जाम से परहेज़ बहुत है मस्लूब हुआ कोई सर-ए-राह-ए-तमन्ना आवाज़-ए-जरस पिछले पहर तेज़ बहुत है 'मजरूह' सुने कौन तिरी तल्ख़-नवाई गुफ़्तार-ए-अज़ीज़ाँ शकर-आमेज़ बहुत है