याद है रोज़-ए-अज़ल उस ने कहा क्या क्या कुछ बर-ख़िलाफ़ इस के यहाँ तू ने किया क्या क्या कुछ हूर दी ख़ुल्द दिया क़स्र दिया रहने को मुझ गुनहगार को ख़ालिक़ ने दिया क्या क्या कुछ साल-हा-साल बहार-ए-चमन-ए-आलम ने रंग दिखलाए हैं हम को ब-ख़ुदा क्या क्या कुछ गह ख़िज़ाँ आई गुलिस्ताँ में कभी बाद-ए-बहार सामने आँखों के बंदे के हुआ क्या क्या कुछ तोहमत-ए-जुर्म-ओ-जफ़ा हिर्स-ओ-हवा ग़फ़लत-ए-दिल हम ने बाज़ार से हस्ती के लिया क्या क्या कुछ आसमान मेहर-ए-फ़लक रू-ए-ज़मीं अर्श-ए-बरीं पेशतर इस से ख़ुदा जाने हुआ क्या क्या कुछ बाब-ए-फ़िर्दोस ओ दर-ए-रौज़ा-ए-रज़वाँ ज़ाहिद बंद इन आँखों के होते ही खुला क्या क्या कुछ नज़्अ' के वक़्त मैं पूछूँगा किसी मुनइ'म से साथ क्या अपने लिया और रहा क्या क्या कुछ वक़्त-ए-दिल जाने के हरगिज़ न ख़बर-दार किया अब समझाती है ये फ़िक्र-ए-रसा क्या क्या कुछ शिद्दत-ए-रंज-ओ-अलम सदमा-ए-दिल सोज़-ए-जिगर फ़ुर्क़त-ए-यार में मुझ पर न हुआ क्या क्या कुछ दैर को पूजा हरम को किए गाहे सज्दे कर लिया ज़ीस्त में बेजा-ओ-बजा क्या क्या कुछ जो तलाफ़ी न हो महशर में अजब है उस का ख़ुद हैं माक़ूल कि याँ हम ने किया क्या क्या कुछ गोश पर जाम के मुँह रात को रख कर अपना किस को मालूम है शीशे ने कहा क्या क्या कुछ दाग़-ए-दिल ख़ून-ए-जिगर आतिश-ए-ग़म दर्द-ए-फ़िराक़ हम को भी इश्क़ की दौलत से मिला क्या क्या कुछ 'मुंतही' ज़ोर-ए-बदन क़ुव्वत-ए-दिल चालाकी एक आने से ज़ईफ़ी के गया क्या क्या कुछ