ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता दयार-ए-दिल पे आते हैं अज़ाब आहिस्ता आहिस्ता सवाल-ए-वहशत-ए-जाँ के जवाब आहिस्ता आहिस्ता बुत-ए-काफ़िर उठाते हैं नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता कोई दस्त-ए-हिनाई मू-क़लम से भरता जाता है निगार-ए-शाम में रंग-ए-शराब आहिस्ता आहिस्ता बगूला इब्तिदा-ए-शौक़ में महमिल दिखाई दे नज़र आते हैं सहरा में सराब आहिस्ता आहिस्ता बहुत बोसीदा यादों के वरक़ झड़ने भी लगते हैं पलट उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब आहिस्ता आहिस्ता सुराग़-ए-नक़्श-ए-पा मिटते चले जाते हैं सहरा में उभरता है सफ़र में इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता कमाल-ए-शौक़-ए-नज़्ज़ारा में उर्यां होता जाता है सर-ए-बाम-ए-फ़लक वो माहताब आहिस्ता आहिस्ता कभी ख़ुशबू कभी नग़्मा कभी रंगीन पैराहन 'नदीम' उगती है यूँ ही फ़स्ल-ए-ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता