ख़राबे में बौछार हो कर रहेगी गली दिल की गुलज़ार हो कर रहेगी हुकूमत ग़मों की नहीं चलने वाली मसर्रत की यलग़ार हो कर रहेगी कि शाख़ों पे फूलों के गुच्छे तो देखो ये बग़िया समर-दार हो कर रहेगी भरे जाएँगे ग़ार पर्बत गिरा कर ये धरती तो हमवार हो कर रहेगी लकीरें फ़क़त खेंचता जा वरक़ पर कोई शक्ल तयार हो कर रहेगी मैं ऐसा फ़साना सुनाने को हूँ अब कि शब भर तू बेदार हो कर रहेगी ये पागल हवा और सफ़र बे-कराँ ये जुदा सर से दस्तार हो कर रहेगी चलाऊँगा तेशा में अब आजिज़ी का अना उस की मिस्मार हो कर रहेगी