तिरी क़ुर्बत में जो रही होगी रात मग़रूर हो रही होगी कब से ख़ुश्बू नज़र नहीं आई उस के पहलू में सो रही होगी याद कर के हमारी फ़ुर्क़त को अपना आँचल भिगो रही होगी हम ने सहरा को छान मारा है प्यास पानी में सो रही होगी जा के शब को ज़रा जगा लाओ उस की ज़ुल्फ़ों में सो रही होगी