ख़राब-ए-शौक़ हुआ जब से इस निगाह का दिल चराग़-ए-मय-कदा है गाह ख़ानक़ाह का दिल न-जाने ख़ाक-नशीं किस के इंतिज़ार में हैं कनार-ए-राह धड़कता है कब से राह का दिल नवाज़िश-ए-ग़म-ए-दौराँ सभी पे यकसाँ है गुनाहगार का दिल हो कि बे-गुनाह का दिल बहार से भी नुमायाँ है इश्क़ का किरदार ये लहलहाता चमन है कि बे-गुनाह का दिल फ़लाह-ए-ख़ल्क़ में उठते हैं ना-गहाँ तूफ़ाँ धड़क रहा है हवाओं में शम-ए-राह का दिल दुआएँ करते चलो ता-ब-मंज़िल-ए-मक़्सूद कि रहज़नों से न मिल जाए ख़िज़्र-ए-राह का दिल तुम्हारी राह में आसार-ए-ज़िंदगी तो मिले है ज़र्रा ज़र्रा किसी आशिक़-ए-तबाह का दिल सुना है शाइर-ए-ख़ुश-फ़िक्र हो गया 'मानी' नियाज़-मंद है इक हुस्न-ए-ख़ुश-निगाह का दिल