तुम कभी आबले पैरों पे सजा कर देखो आगही मिलती है सहराओं में जा कर देखो अरसा-ए-ख़्वाब के असरार खुलेंगे तुम पर अपनी आवाज़ में कुछ सोज़ रचा कर देखो शाख़-दर-शाख़ क़यामत का फ़ुग़ाँ उट्ठेगा फूल पर बैठी हुई तितली उड़ा कर देखो किस क़दर होता है ताराज सुकून-ए-गुलशन फूल से तू ज़रा तितली को गिरा कर देखो रद नहीं होती कभी सुनते यही आए हैं चाँदनी रात में मिलने की दुआ कर देखो मुंतज़िर कौन खड़ा कौन पड़ा है दर पर तुम लटकती हुई चिलमन को हटा कर देखो बन भी सकता है मोहब्बत का फ़साना 'आदिल' तुम उसे रखना सदा दिल में छुपा कर देखो