ख़त की रुख़्सारों पर उस गुल के जो तहरीरें हैं दो है वो मुसहफ़-रुख़ कि जिस के साथ तफ़्सीरें हैं दो हुस्न वो तुर्क-ए-सितमगर है कि जिस के पास चार तरकशें मिज़्गाँ की और अबरू की शमशीरें हैं दो या बुलाओ हम को पिन्हाँ या तुम आओ छुप के याँ गर मिला चाहो तो मिलने की ये तदबीरें हैं दो फ़िल-हक़ीक़त फ़ैज़-ए-जज़्ब-ए-इश्क़ से बाहम हैं एक लैला-ओ-मजनूँ की गो ज़ाहिर में तस्वीरें हैं दो दिल दिया और की वफ़ा उस की जफ़ाओं पर 'नज़ीर' ग़ौर से देखा तो ये अपनी ही तक़्सीरें हैं दो