हम तज़्किरा-ए-लुत्फ़-ओ-करम करते रहेंगे आसाइश-ए-कौनैन बहम करते रहेंगे ये गंज-ए-सआ'दत कभी ख़ाली ही न होगा सब आप के अल्ताफ़ रक़म करते रहेंगे लौटे जो मदीने से तो पछताते हैं अब तक कब तक नहीं मा'लूम ये ग़म करते रहेंगे जाएँगे वहीं छोड़ के सब रौज़ा-ए-रिज़वाँ यसरिब को जो वो रश्क-ए-इरम करते रहेंगे देखेंगे कभी 'तहनियत' अपनी भी तरफ़ वो अश्कों से जो हम आँखों को नम करते रहेंगे