ख़ता अंजाम हो कर रह गया है बशर नाकाम हो कर रह गया है तिरा मिलना बक़ैद-ए-ज़िंदगानी ख़याल-ए-ख़ाम हो कर रह गया है फ़रेब-ए-ए'तिबार-ए-सई-ए-पैहम मिरा अंजाम हो कर रह गया है हर इक उनवाँ बयाज़-ए-आरज़ू का तिरा पैग़ाम हो कर रह गया है दिल-ए-नाकाम का हर दाग़-ए-हसरत सवाद-ए-शाम हो कर रह गया है वफ़ा का नाम 'फ़ारिग़' इस जहाँ में बराए-नाम हो कर रह गया है