ख़ता बेताबियों की क़ल्ब पर बेदाद करते हैं किसे बर्बाद करना था किसे बर्बाद करते हैं यहाँ दिन-रात जिन की याद में फ़रियाद करते हैं चमन वाले भी ऐ सय्याद हम को याद करते हैं इलाहा शान-ए-ख़ुद्दारी ये इस्तिग़्नाइयाँ कब तक तिरे बंदे बुतों के सामने फ़रियाद करते हैं तुझे दिल मुफ़्त देते हैं हमारा ये कलेजा है कि अपना घर लुटा कर तेरा घर आबाद करते हैं अदा-ए-बे-नियाज़ी छा रही है सारे आलम पर हरम के रहने वाले बुत-कदे आबाद करते हैं सरापा पैकर-ए-मस्ती मुजस्सम शान-ए-रानाई किसी को देखते हैं और ख़ुदा को याद करते हैं चमन भी आए लेने को क़फ़स से हम न जाएँगे रिहा ये कौन होता है किसे आज़ाद करते हैं मोहब्बत है उन्हीं अजज़ा-ए-मजबूरी का मजमूआ' भुलाते हैं जिन्हें दिल से उन्हीं को याद करते हैं न वो बू-ए-वफ़ा गुल में न वो नज़रें हैं ग़ुंचों की चमन को छोड़ कर अब बै'अत-ए-सय्याद करते हैं इन्हीं ज़र्रात-ए-बेताबी से दिल की ज़िंदगानी है यही ज़र्रात-ए-बेताबी हमें बर्बाद करते हैं फ़रेब-ए-आरज़ू का नाम वस्ल-ए-यार रखा है वुफ़ूर-ए-ग़म में धोके दे के दिल को शाद करते हैं वही बाज़ू वही ताक़त वही परवाज़ है अब भी क़फ़स की तीलियाँ क्या ख़ातिर-ए-सय्याद करते हैं सुकूत-ए-दिल नहीं ख़ामोशी-ए-लब ऐ 'मुनीर' इक दिन दिखा देंगे ये अहल-ए-ज़ब्त यूँ फ़रियाद करते हैं