खटक रही है घुटन की ये बूद-ओ-बाश मुझे पड़ा हूँ मैं किसी पत्थर में तू तराश मुझे मुलाएमत से नफ़ासत से छू मिरा पैकर और ऐसे छू कि न आए कोई ख़राश मुझे इधर-उधर के इलाक़ों में ढूँढता है क्या मैं तेरे दिल में छुपा हूँ वहाँ तलाश मुझे सफ़ेद काँच के पुल पर पहुँच के सोचता हूँ मिरा ग़ुरूर ही कर दे न पाश-पाश मुझे मैं पूरे क़द से खड़ा हूँ सुख़न सराए में लगे रहे हैं गिराने में बद-मआ'श मुझे बदन में ख़ून की शायद कमी हुई पैदा कहीं भी संगतरे की मिली न क़ाश मुझे जमाल-ओ-हुस्न के पहलू की धूप है दरकार ऐ 'आफ़्ताब'-ए-तमन्ना न कर निराश मुझे