अजीब दुख है ये किस रंज में पड़ा हूँ अभी बिछड़ के उस से शश-ओ-पंज में पड़ा हूँ अभी वो इक गुदाज़ भरा लम्स मुझ से दूर हुआ सो उस के दस्त-ए-अपाहंज में पड़ा हूँ अभी कोई निकाल के मुझ को तराश सकता है मैं एक संग किसी गंज में पड़ा हूँ अभी बिठा के साथ कोई घुड़सवार ले जाए मैं इक पियादा हूँ शतरंज में पड़ा हूँ अभी किसी भी सूद-ओ-ज़ियाँ का हिसाब हो न सका अजब तरह के ख़फ़ी बंज में पड़ा हूँ अभी