ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी जोश-ए-नशात हो चुका सौत-ए-हज़ार हो चुकी रंग-ए-बनफ़शा मिट गया सुंबुल-ए-तर नहीं रहा सेहन-ए-चमन में ज़ीनत-ए-नक़्श-ओ-निगार हो चुकी मस्ती-ए-लाला अब कहाँ उस का प्याला अब कहाँ दौर-ए-तरब गुज़र गया आमद-ए-यार हो चुकी रुत वो जो थी बदल गई आई बस और निकल गई थी जो हवा में निकहत-ए-मुश्क-ए-ततार हो चुकी अब तक उसी रविश पे है 'अकबर'-ए-मस्त-ओ-बे-ख़बर कह दे कोई अज़ीज़-ए-मन फ़स्ल-ए-बहार हो चुकी