ख़त्म उन के कभी सितम न हुए सर हमारे अगरचे ख़म न हुए तुम कोई शाम ऐसी बतलाओ जब हुए तुम उदास हम न हुए अपना ख़ालिक़ तो है सनम अपना हम किसी के मगर सनम न हुए किस को आँखें मिला के देखें जब तेरी नज़रों में मोहतरम न हुए और जीने का क्या हुनर रखते कम से कम हाथ तो क़लम न हुए क्या हुआ लफ़्ज़ लफ़्ज़ जीने से इक इबारत में जब रक़म न हुए लुत्फ़ 'बेबाक' उस सफ़र में कहाँ जिस की राहों में ज़ेर-ओ-बम न हुए