किसी की राह का पत्थर हटा रहा हूँ अभी सफ़र को और भी मुश्किल बना रहा हूँ अभी उसे ये जान कर अच्छा बहुत लगेगा मगर मैं उस की याद में सब कुछ भुला रहा हूँ अभी मैं साथ अपने ही साए का छोड़ दूँ न कहीं कि सर पे धूप ग़मों की उठा रहा हूँ अभी हयात तू भी तो धोके से कम नहीं लेकिन फ़रेब तेरे लिए सब से खा रहा हूँ अभी मैं आँधियों से डरा कब कि आज घबराऊँ तो फिर दिए से दिए क्यूँ जला रहा हूँ अभी मुझे पढ़े तो कोई किस तरह पढ़े 'बेबाक' मैं ख़ुद को आब पे लिख कर मिटा रहा हूँ अभी