ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे By Ghazal << रूह प्यासी कहाँ से आती है वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबला-पा... >> ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है तू दुश्मन न हो जावे समझ इस फ़स्ल में कोताही-ए-नश्व-ओ-नुमा 'ग़ालिब' अगर गुल सर्व के क़ामत पे पैराहन न हो जावे Share on: