ख़ूब बूझा हूँ मैं उस यार कूँ कुइ क्या जाने इस तरह के बुत-ए-अय्यार कूँ कुइ क्या जाने ले गईं हात सें दिल उस की झुकी हुई आँखें हीला-ए-मर्दुम-ए-बीमार कूँ कुइ क्या जाने मैं न बूझा था तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार के पेच सच कि कैफ़िय्यत-ए-मक्कार कूँ कुइ क्या जाने शरह-ए-बे-ताबी-ए-दिल नीं है क़लम की ताक़त तपिश-ए-शौक़ के तूमार कूँ कुइ क्या जाने शर्बत-ए-ख़ून-ए-जिगर का मज़ा आशिक़ पावे लज़्ज़त-ए-इश्क़-ए-जिगर-ख़ार कूँ कुइ क्या जाने मशरब-ए-इश्क़ में हैं शैख़-ओ-बरहमन यकसाँ रिश्ता-ए-सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार कूँ कुइ क्या जाने नमक-ए-ज़ख़्म हुआ मरहम-ए-जालीनोसी ख़लिश-ए-सीना-ए-अफ़गार कूँ कुइ क्या जाने तौक़-ओ-ज़ंजीर नहीं जिस पे किसे रहम आवे दाम-ए-उल्फ़त के गिरफ़्तार कूँ कुइ क्या जाने जब तलक तल्ख़ी-ए-शोराब-ए-ग़म चाखा नीं तब तलक लज़्ज़त-ए-दीदार कूँ कुइ क्या जाने क़द्र उस नाफ़ा-ए-तातार की मुझ सें पूछो यार की ज़ुल्फ़ की महकार कूँ कुइ क्या जाने मैं कहा ज़ख़्मी-ए-ग़म हूँ तो दिया उस ने जवाब ऐ 'सिराज' ऐसे छुपे वार कूँ कुइ क्या जाने