ख़ूब-रू जो एक का महबूब नहीं ऐसे हरजाई से मिलना ख़ूब नहीं चोली नीची मत पहन ऐ जामा-ज़ेब इस में छब तख़्ती का कुछ उस्लूब नहीं मैं तो तालिब दिल से हूँगा दीन का दौलत-ए-दुनिया मुझे मतलूब नहीं सब्र कब तक हिज्र में तेरे करूँ मैं तिरा आशिक़ हूँ कुइ अय्यूब नहीं यार की 'ताबाँ' ज़नख़दाँ को न चाह देख कहता हूँ कुएँ में डूब नहीं