ख़ुद अपना बोझ उठाओ यहाँ से कूच करो ज़मीं पे पाँव धरो आसमाँ से कूच करो फ़क़त उदासी मिरा दुख बता नहीं पाती ऐ मेरे आँसुओ दर्द-ए-निहाँ से कूच करो है उस के अक्स-ए-गुरेज़ाँ की जल्वा-आराई अब अपने घर में रहो आस्ताँ से कूच करो ये क्या कि एक जगह पर ही उम्र गुज़रेगी रहीन-ए-जिस्म उतारो जहाँ से कूच करो चलो कि ढूँड के लाएँ कहीं से जज़्ब-ए-अदा उठो कि रह-गुज़रान-ए-बुताँ से कूच करो