गुज़र औक़ात नहीं हो पाती दिन से अब रात नहीं हो पाती सारी दुनिया में बस इक तुम से ही अब मुलाक़ात नहीं हो पाती जो धड़कती है मिरे दिल में कहीं अब वही बात नहीं हो पाती जम्अ' करता हूँ सर-ए-चश्म बहुत फिर भी बरसात नहीं हो पाती लाख मज़मूँ लब-ए-इज़हार पे हैं और मुनाजात नहीं हो पाती हाथ में हाथ लिए फिरती है ख़त्म ये रात नहीं हो पाती