ख़ुद को मसरूफ़-ए-इबादत कर दिया हसरतों को दिल से रुख़्सत कर दिया हो गईं आसान सारी मंज़िलें दिल को पाबंद-ए-शरीअ'त कर दिया तुझ से पहले मेरी क़ीमत कुछ न थी तू ने मुझ को बेश-क़ीमत कर दिया मुफ़्लिसी में थी मुरव्वत दोस्तो माल-ओ-ज़र ने बे-मुरव्वत कर दिया दर्द बन कर ज़िंदगी ने एक दिन राहतों को घर से रुख़्सत कर दिया