ख़ुद रह के मुश्किलात में हल दे दिया उसे मैं वो शजर ख़िज़ाँ में भी फल दे दिया उसे मोती लुटाए मैं ने समुंदर था जब तलक अब झील हो गया तो कँवल दे दिया उसे पथराव जिस का शेवा दिल-आज़ारी जिस का शौक़ मुंसिफ़ ख़ुदा है शीश-महल दे दिया उसे वो इक ग़रीब मुझ से मिला हो गया अमीर मैं इक फ़क़ीर दर्स-ए-अमल दे दिया उसे पूरी हुई न शर्त-ए-मोहब्बत तो ख़्वाब में बुलवाया और ताज-महल दे दिया उसे उस ने कहा कि हुस्न की तारीफ़ कीजिए इक शे'र जो था हुस्न-ए-ग़ज़ल दे दिया उसे अब ता-अबद उसी की हुकूमत में है जहाँ सब कुछ ख़ुदा ने रोज़-ए-अज़ल दे दिया उसे 'शैदा' बहुत ख़लीक़ है कहते हैं सारे लोग रब ने मोहब्बतों का बदल दे दिया उसे