ख़ुद से जब बे-ज़ारी हो किस से बात तुम्हारी हो चाहे मुझ से दूर रहो मेरी ज़िम्मेदारी हो एक सा मौसम लगता है ख़ुशी हो या बे-ज़ारी हो तुम भी बज़्म में हो मौजूद राग भी फिर दरबारी हो दिल का हाल छुपा लूँ तो अच्छी दुनिया-दारी हो खुल के मुझ से बात करे जिस को कुछ दुश्वारी हो ख़ुश मत हो ये मुमकिन है अगली तेरी बारी हो गिला नहीं उस से जिस को हँसने की बीमारी हो