ख़ुद से तो आए न थे अहल-ए-ज़मीं सुनता है क्यूँ उन्हें भेज के अब उन की नहीं सुनता है ये अगर सच है तो फिर आज इसे साबित कर कि सुना है तू सर-ए-अर्श-ए-बरीं सुनता है वो जो सुनता नहीं तेरी तो गिला कैसा है तू भी कब उस की मिरे ख़ाक-नशीं सुनता है बिगड़े बच्चे की तरह शोर मचाए जाए ये मिरा दिल कि किसी की भी नहीं सुनता है हुस्न के हुस्न तग़ाफ़ुल से परेशान न हो ग़ौर से बात कहाँ कोई हसीं सुनता है भूक इफ़्लास दग़ा जुर्म की बोहतात 'वसी' फिर भी लगता है तुझे कोई कहीं सुनता है