ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए शायद क़दम जुनूँ के गुलिस्ताँ में आ गए इस के सिवा बताएँ असीरी का क्या सबब घबराए अंजुमन से तो ज़िंदाँ में आ गए क्या होगा चार फूलों से ऐ मौसम-ए-बहार ये तो हमारे गोशा-ए-दामाँ में आ गए जोश-ए-बहार और ये बे-इख़्तियारियाँ सू-ए-चमन चले थे बयाबाँ में आ गए 'सीमाब' किब्र-ओ-नाज़ का अंजाम कुछ न पूछ सब रफ़्ता रफ़्ता गोर-ए-ग़रीबाँ में आ गए