सामने तेरे हूँ घबराया हुआ बे-ज़बाँ होने पर शरमाया हुआ लाख अब मंज़र हो धुँदलाया हुआ याद है मुझ को नज़र आया हुआ ये भी कहना था बता कर रास्ता मैं वही हूँ तेरा भटकाया हुआ मैं कि इक आसेब इक बे-चैन रूह बे-वुज़ू हाथों का दफ़नाया हुआ आ गया फिर मशवरा देने मुझे ख़ेमा-ए-दुश्मन का समझाया हुआ फिर वो मंज़िल लुत्फ़ क्या देती मुझे मैं वहाँ पहुँचा था झुँझलाया हुआ तेरी गलियों से गुज़र आसाँ नहीं आज भी चलता हूँ घबराया हुआ कुछ नया करने का फिर मतलब ही क्या जब तमाशाई है उकताया हुआ कम से कम इस का तो रखता वो लिहाज़ मैं हूँ इक आवाज़ पर आया हुआ मुझ को आसानी से पा सकता है कौन मैं हूँ तेरे दर का ठुकराया हुआ