ख़ुदा का शुक्र है कोई बिछड़ कर लौट आया है ज़माने भर के अफ़्साने भी अपने साथ लाया है तआ'रुफ़ हो तो मैं तुम को बताऊँ उस के बारे में कि जिस की याद ने मुझ को सताया है रुलाया है सुना तो है कि मेरा नाम सुन कर वो बुत-ए-काफ़िर ज़रा सा गुनगुनाया है बहुत सा मुस्कुराया है मोहब्बत मुख़्तलिफ़ अंदाज़ से करता रहा है वो कभी उस ने गिराया है कभी उस ने उठाया है किसी को अपनी नाकामी का कैसे दोष दूँ 'जाज़िब' मिरी आवारगी ने ही मुझे ये दिन दिखाया है