ख़ुदा मिरे दिल-ए-पुर-ख़ूँ को दाग़-दार करे जो लाला-ज़ार मिरी ख़ाक से बहार करे मुराद-ए-दिल है यही आरज़ू-ए-दिल है यही ख़ुदा मुझे तिरी उल्फ़त से इश्तिहार करे बना है शीशा-ए-साअत मिरा दिल-ए-नाज़ुक ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-याराँ का ता शुमार करे फ़रौतनी के तसद्दुक़ से है सुबुक-पर्वाज़ न सर-कशी पे शरर अपनी इफ़्तिख़ार करे