ख़ुदा मुआफ़ करे ज़िंदगी बनाते हैं मिरे गुनाह मुझे आदमी बनाते हैं हवस है सारे जहानों पे हुक्मरानी की वो सिर्फ़ चाँद नहीं रात भी बनाते हैं मिरे लिए तो मुक़द्दस हैं वो सहीफ़े भी जो रौशनी के लिए रौशनी बनाते हैं न इस हुजूम में रक्खो मुझे ख़ुदा के लिए जो शेर कहते नहीं शाएरी बनाते हैं तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को ये आईने भी मिरे लोग ही बनाते हैं मैं आसमान बनाता हूँ मेरी बात करो यहाँ तो चाँद सितारे सभी बनाते हैं मैं शुक्रिया अदा करता हूँ सब रक़ीबों का यही अँधेरे मुझे रौशनी बनाते हैं