तुम्हें अब याद आई है मिरी क्या ठिकाने लग गई आवारगी क्या चराग़ों को बुझाते फिर रहे हो तुम्हारा मसअला है रौशनी क्या तुम्ही शामिल नहीं जब ज़िंदगी में भला हम क्या हमारी ज़िंदगी क्या तुम्हारा तजरबा क्या कह रहा है करोगे फिर किसी से दोस्ती क्या इसी दुनिया में तुम हो और मैं भी तो अब मुमकिन नहीं है वापसी क्या ख़ुदा माने हुए हो एक बुत को करोगे अब उसी की बंदगी क्या नज़र रखते हो चूज़ोंं पर हमेशा तुम्हारी भी नज़र है चील सी क्या मुक़द्दर सो रहा है जाने कब से उसे घेरे हुए है नीस्ती क्या इज़ाफ़ा हो रहा है दुश्मनों में मुसीबत बन रही है शाइरी क्या फ़सीलें तोड़ कर निकली हो घर से तुम्हें करना है 'रख़्शाँ' ख़ुद-कुशी क्या