ख़ुदा ने जिस को चाहा उस ने बच्चे की तरह ज़िद की ख़ुदा बख़्शिश करेगा इस लिए इक़बाल-'साजिद' की गवाही देगा इक दिन ख़ुद मिरा मुंसिफ़ मिरे हक़ में धरी रह जाएँगी सारी दलीलें मिरे हासिद की वही जो पहले आया था वो सब के ब'अद भी आया उसी पैकर ने तो पहचान करवाई है मूजिद की जो मेरे दिल में थी उस ने वही तहरीर पहुँचाई अब उस से बढ़ के क्या तारीफ़ हो सकती है क़ासिद की जो अंदर से नहीं बाहर से ख़द-ओ-ख़ाल मनवाए पर असल-ए-आईना सूरत गँवा देता है क़ासिद की हवाले से जो मनवाए वो सच्चाई नहीं होती क़सम खाता नहीं हूँ इस लिए मैं रब्ब-ए-वाहिद की