न मानी उस ने एक भी दिल की दिल ही में बात रह गई दिल की गेसू-ए-यार में ये बात कहाँ और ही शय है बरहमी दिल की खींचते हैं वो तीर पहलू से खोए देते हैं दिल-लगी दिल की यूँ वो निकले तड़प के पहलू से शक्ल आँखों में फिर गई दिल की घटती जाती है उन की मेहर-ओ-वफ़ा बढ़ती जाती है बे-ख़ुदी दिल की छोड़ दो इन से रस्म-ओ-राह 'नसीम' चाहते हो जो बेहतरी दिल की