ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस ख़ुदारा बस दुहाई हो चुकी बस किसी ढब से निपट लो जब मज़ा है बहुत ज़ोर-आज़माई हो चुकी बस बुझाए कौन तू जिस को जलाए पतंगों की चढ़ाई हो चुकी बस हवा में उड़ गया एक एक पत्ता गुलों की जग-हँसाई हो चुकी बस भला अब क्या जचूँ अपनी नज़र में नज़र अपनी पराई हो चुकी बस रहा क्या जब दिलों में फ़र्क़ आया उसी दिन से जुदाई हो चुकी बस पड़े हो कौन से गोशे में तन्हा 'यगाना' क्यूँ ख़ुदाई हो चुकी बस