ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया ख़ुदा बने थे 'यगाना' मगर बना न गया पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया इशारा पाते ही अंगड़ाई ली रहा न गया हँसी में वादा-ए-फ़र्दा को टालने वालो लो देख लो वही कल आज बन के आ न गया गुनाह-ए-ज़िंदा-दिली कहिए या दिल-आज़ारी किसी पे हँस लिए इतना कि फिर हँसा न गया पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया करूँ तो किस से करूँ दर्द-ए-ना-रसा का गिला कि मुझ को ले के दिल-ए-दोस्त में समा न गया बुतों को देख के सब ने ख़ुदा को पहचाना ख़ुदा के घर तो कोई बंदा-ए-ख़ुदा न गया कृष्ण का हूँ पुजारी अली का बंदा हूँ 'यगाना' शान-ए-ख़ुदा देख कर रहा न गया