ख़ुदा-परस्त हुए न हम बुत-परस्त हुए किसी तरफ़ न झुका सर कुछ ऐसे मस्त हुए जिन्हें ग़ुरूर बहुत था नमाज़ रोज़े पर गए जो क़ब्र में सारे वुज़ू शिकस्त हुए ग़ुरूर कर के निगाहों से गिर गए मग़रूर बुलंद जितने हुए उतने और पस्त हुए रहा ख़ुमार के सदमे से चूर शीशा-ए-दिल मगर न साइल-ए-मय तेरे मय-परस्त हुए तड़प दिखा न उसे 'बहर' माही-ए-दिल की ग़ज़ब हुआ जो वो तार-ए-निगाह शस्त हुए