ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके हम अपने जौहरों को नुमायाँ न कर सके हो कर ख़राब-ए-मय तिरे ग़म तो भुला दिए लेकिन ग़म-ए-हयात का दरमाँ न कर सके टूटा तिलिस्म-ए-अहद-ए-मोहब्बत कुछ इस तरह फिर आरज़ू की शम्अ फ़िरोज़ाँ न कर सके हर शय क़रीब आ के कशिश अपनी खो गई वो भी इलाज-ए-शौक़-ए-गुरेज़ाँ न कर सके किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके मायूसियों ने छीन लिए दिल के वलवले वो भी नशात-ए-रूह का सामाँ न कर सके