तेरे आने का एहतिमाल रहा मरते मरते यही ख़याल रहा ग़म तिरा दिल से कोई निकले है आह हर-चंद मैं निकाल रहा हिज्र के हाथ से हैं सब रोते याँ हमेशा किसे विसाल रहा शम्अ साँ जलते हिलते काटी उम्र जब तलक सर रहा वबाल रहा मिल गए ख़ाक में ही तिफ़्ल-ए-सरिश्क मैं तो आँखों में गरचे पाल रहा समझिए इस क़दर न कीजे ग़ुरूर कोई भी हुस्न ला-ज़वाल रहा तेरे दर से कोई भी टलता हूँ मुझ को हर-चंद तू तो टाल रहा दिल न सँभला अगरचे मैं तो उसे अपने मक़्दूर तक सँभाल रहा फिर न कहना 'असर' न कुछ सुनना कोई दिन गर यूँही जो हाल रहा