ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने मेरे हाथों से भी लूटा है मुझे दुनिया ने दिल तो बे-दाम बिका ज़ेहन की क़ीमत न लगी कैसे बाज़ार में बेचा है मुझे दुनिया ने वक़्फ़-ए-जज़्बात न होने की सज़ा दी है अजब आतिश-ए-सर्द में फूँका है मुझे दुनिया ने हम-सफ़र मुझ को बनाने से गुरेज़ाँ है मगर हर नए मोड़ पे ढूँडा है मुझे दुनिया ने बे-असर मेरी फ़ुतूहात रही हैं 'अख़्तर' मैं जो हारा हूँ तो पूजा है मुझे दुनिया ने