ख़ुलूस अपना लिए मिलते हैं फ़नकारी नहीं करते हम अपने दोस्तों के साथ मक्कारी नहीं करते लुटा देते हैं जान-ओ-दिल मोहब्बत करने वालों पर कभी हम जज़्ब-ए-उल्फ़त की ख़रीदारी नहीं करते जिन्हें आदत है गिरगिट की तरह रंगत बदलने की वो अपने दोस्तों से भी वफ़ादारी नहीं करते हमारा सर कभी झुकता नहीं है ग़ैर के आगे कभी हम इख़्तियार अंदाज़-ए-दरबारी नहीं करते हमेशा झूट से लड़ता रहा हूँ मैं तन-ए-तन्हा जो सच्चे लोग हैं मेरी तरफ़-दारी नहीं करते लहू दे कर जिसे शादाब करना अपना मस्लक है हम अपने देश की मिट्टी से ग़द्दारी नहीं करते मतानत से 'सईद' अपनी ग़ज़ल को पेश करते हैं अदाकारी नहीं आती अदाकारी नहीं करते