ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए मिस्ल-ए-साग़र और के काम आइए अब्र-ए-रहमत सुनते हैं नाम आप का ख़ाकसारों पर करम फ़रमाइए आप आहू-चश्म हैं आहू नहीं हम से वहशत की न लीजे आइए सब्र रुख़्सत हो तो जाने दीजिए बे-क़रारी आए तो ठहराइए जौहर-ए-तेग़-ए-निगह खुल जाएगा मुँह न मेरे ज़ख़्म का खुलवाइए दिल में है दिखलाइए तासीर-ए-इश्क़ ठंडी साँसों से उन्हें गर्माइए सर्द आहें भरते हैं जब हम 'नसीम' कहते हैं वो ठंडे ठंडे जाइए