ख़ुमार-ए-शब में ज़मीं का चेहरा निखर रहा था कोई सितारों की पालकी में उतर रहा था नहा रहे थे शजर किसी झील के किनारे फ़लक के तख़्ते पे चाँद बैठा सँवर रहा था हवाएँ दीवार-ओ-दर के पीछे से झाँकती थीं धुआँ लपेटे कोई गली से गुज़र रहा था खड़ा था मेरी गली से बाहर जहान सारा मैं ख़्वाब में अपने आप से बात कर रहा था हवा का झोंका उदास कर के चला गया है अभी अभी तो मैं जाम-ए-ग़फ़्लत को भर रहा था और अब ठहर जा 'नवेद' आगे तो कुछ नहीं है तू उम्र भर इस ख़याल से बे-ख़बर रहा था