ख़ुश हूँ या दोस्त से ख़फ़ा हूँ मैं आज-कल कुछ नया नया हूँ मैं तुम पे सौ जान से फ़िदा हूँ मैं तुम जिसे चाहो उस को चाहूँ मैं हर अदा पर तिरी फ़िदा हूँ मैं आइना बन के देखता हूँ मैं उन को ये आरज़ू अरे तौबा मैं कहूँ आरज़ू भरा हूँ मैं ऐ अता कोश कर अताई नज़र ऐ ख़ता-पोश बे-ख़ता हूँ मैं इब्तिदा ही ग़लत है बिस्मिल्लाह अपना अंजाम सोचता हूँ मैं एक नादान दोस्त की ख़ातिर दुश्मनों से मिला हुआ हूँ मैं कस्मपुर्सी है ख़ाक होने तक ख़ाक होते ही कीमिया हूँ मैं इश्क़-बाज़ी है ज़िंदा-दर-गोरी मौत से पहले मर चुका हूँ मैं किसी सूरत भी कामयाब नहीं किस निरासे का मुद्दआ' हूँ मैं हिज्र में मौसम-ए-हुजूम-ए-गुल और दीवाना बन गया हूँ मैं मुझ को क्यूँ जानते हो मुस्तग़नी नहीं बंदो नहीं ख़ुदा हूँ मैं इश्क़ ने कर दिया निकम्मा सा अब तिरे काम का बना हूँ मैं तलब-ए-हक़ है ऐसे इज्ज़ के साथ जैसा ख़ैरात माँगता हूँ मैं अभी सब कुछ अभी नहीं कुछ भी ऐ 'सफ़ी' क्या बताऊँ क्या हूँ मैं