ख़ुशी के यास के लम्हे हमें रुलाते हैं कि ज़िंदगी में नशेब-ओ-फ़राज़ आते हैं जलाओ अपने लबों पर तबस्सुमों के दिये अँधेरे ग़म के तो आते हैं और जाते हैं कभी जो दिल में वफ़ा के चराग़ जलते थे मगर वो आज कहाँ रौशनी लुटाते हैं जहाँ भी जाऊँ वहाँ पर सुकूँ नहीं मिलता हर इक जगह पे नए हादसे सताते हैं जो हो भी जाए तमन्ना का ख़ून सह लेना ये अब्र वो हैं जो मौसम बदल के जाते हैं तिरे नसीब के तारे भी 'शाद' चमकेंगे हम अब चराग़ तिरी राह में जलाते हैं