तिरे सपने मिरी नींदों के बराबर कर दे तू मुझे अपनी वफ़ाओं से मोअ'त्तर कर दे मेरी साँसों का यक़ीं आज ज़रा होने दे रू-ब-रू आ के मुझे चैन मयस्सर कर दे जिस ने साहिल के हर इक दर्द को अपनाया है ऐ ख़ुदा तू मुझे वैसा ही समुंदर कर दे वक़्त देता है बड़ा ज़ख़्म तो भरता भी है मुस्कुरा के तू ज़रा ख़ुद को गुल-ए-तर कर दे दर-ओ-दीवार भी है छत भी झरोका भी है ये मकाँ है तू ज़रा आ के उसे घर कर दे राह सुनसान मुझे कौन दिखाए मंज़िल इक नज़र डाल मुझे मील का पत्थर कर दे अपने पैरों पे खड़ी हो के मैं दुनिया देखूँ ऐ ख़ुदा 'शाद' का क़द ऐसा तनावर कर दे