ख़ुशियाँ याद नहीं हैं और ग़म याद नहीं कैसा हमदम है जिस को हम याद नहीं एक अर्से से भूला हुआ हूँ मैं उस को हुईं थीं मेरी आँखें कब नम याद नहीं हम तो अज़ल से तन्हा थे सो तन्हा हैं ग़म वो मिले हैं ख़ुशी का आलम याद नहीं जिस में फूल खिला करते हैं उल्फ़त के क्या तुम को वो प्यार का मौसम याद नहीं कैसे जुनूँ ने घेरा डाला गिर्द मिरे जो तुम ने अपनाए वो ग़म याद नहीं इस अंदाज़े से उजड़ा ये बाग़ 'वक़ास' जिस दम में था दम अब वो दम याद नहीं