मिरी ख़मोशी को भी इक सदा समझते रहे मैं क्या था और मुझे लोग क्या समझते रहे हमारी नस्ल को उजलत ने ना-मुराद किया ज़रा से शोर को ये देर-पा समझते रहे ये दोस्त मेरे मुझे आज तक न जान सके मैं एक दर्द था लेकिन दवा समझते रहे दिखाई देता था ये शहर मेरी आँखों से यहाँ के लोग मुझे आइना समझते रहे ख़याल-ए-यार की चादर थी एक ख़्वाब 'अज़ीज़' ये और बात उसे हम क़बा समझते रहे