ख़ुशियों का रास्ता गो बड़ा मुख़्तसर रहा है लेकिन ये दुख सदा से मिरा हम-सफ़र रहा है उस की अदा पे शायद रोने लगे फ़लक भी वा'दों से अपने कैसे अब वो मुकर रहा है कैसी बहार है ये कैसा है वस्ल-ए-मौसम टहनी से टूट कर जो रह में बिखर रहा है वो जा चुका है तो फिर उस से गिला भी क्यूँकर कब साथ इस जहाँ कोई उम्र भर रहा है ख़ुश्बू की और ख़ुशी की उम्मीद क्या करें अब जब आँधियों की ज़द में दिल का नगर रहा है दिल खोल कर हैं बरसीं फिर से हमारी आँखें 'शाहीन' हिज्र-ए-मौसम फिर से निखर रहा है