ख़ुश्क आँखों से कोई प्यास न जोड़ी हम ने आस हम से जो शराबों को थी तोड़ी हम ने बारहा हम को मिला अपने लहू में वो शरर अपनी दुखती हुई रग जब भी निचोड़ी हम ने जो सँवरने को किसी तौर भी राज़ी न हुई भाड़ में फेंक दी दुनिया वो निगोड़ी हम ने इस तरह हम ने समुंदर को पिलाया पानी अपनी कश्ती किसी साहिल पे न मोड़ी हम ने जब कोई चाँद मिला दाग़ न देखे उस के आँख सूरज से मिला कर न सिकोड़ी हम ने गर्द ग़ैरत के बदन पर जो नज़र आई कभी देर तक अपनी अना ख़ूब झिंझोड़ी हम ने