ख़ुश्क मिट्टी में लहू की जो नमी आएगी देखना बाग़ में फिर सब्ज़ परी आएगी कट गई उम्र इसी धुन में सफ़र करते हुए दो क़दम और अभी छाँव घनी आएगी सच्चे अल्फ़ाज़ बरतने लगे अशआ'र में हम अपने हिस्से में भी हीरे की कनी आएगी दम-ब-दम ख़ूँ की रवानी में भँवर पड़ते हैं ऐसा लगता है कोई सख़्त घड़ी आएगी देख कर सख़्ती-ए-हालात गुमाँ है 'अंजुम' अपने बा'द आएगी जो नस्ल जरी आएगी